हैरान हूँ मैं ख़ुद, अपने सब्र का पैमाना देखकर…*💕💕
*उसने याद नहीं किया, और मैंने इंतज़ार नहीं छोड़ा….!!!!* 💕💕
हैरान हूँ मैं ख़ुद, अपने सब्र का पैमाना देखकर…*💕💕
*उसने याद नहीं किया, और मैंने इंतज़ार नहीं छोड़ा….!!!!* 💕💕
मुझसे नहीं कटती अब
ये उदास रातें.,
कल सूरज से कहूँगी …
.
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मुझे साथ लेकर डूबे.!!
काँपते हाथों से बंद किये थे कभी किवाड़ जिसके,
देख तेरा वही टूटता मकान हूँ मैं..!!
मै घर मे बैठकर पढता रहा सफर की दुआ
उसके वास्ते … जो मुझसे दूर जा रही थी
सिर्फ़ धोखा ही #शुद्ध मिलता है
इस ज़माने में , साहिब बाक़ी तो सब में #मिलावट है ..
आज इक और बरस बीत गया उस के बग़ैर
जिस के होते हुए होते थे ज़माने मेरे ।
Koi shikwa bhi nahin koi shikayat bhi nahin…!!
Ab hamain tum say wo pehli si mohaBbat bhi nahin…❣️
मुझे क़बूल है.. हर दर्द.. हर तकलीफ़ तेरी चाहत में..
सिर्फ़ इतना बता दो.. क्या तुम्हें मेरी मोहब्बत क़बूल है..?
उनके सारे ग़मों को, दिल में सजा लिया हमने !
अपने मोम से दिल को, पत्थर बना लिया हमने !
खुशियों की आहट को जब जब भी सुना दूर से,
दिल पर उदासिओं का, पहरा लगा दिया हमने !
रौशनी की कमीं न हो महसूस उनको कभी भी,
ज़रुरत पड़ी तो अपना ही, दिल जल दिया हमने !
अफ़सोस कि हमें तज़ुर्बा न था ज़िन्दगी जीने का,
बस औरों की आग मे, खुद को जला दिया हमने !
ये कैसा अजीब सा नसीब पाया है हमने भी यारो,
जो खंज़र लिए बैठे हैं, उन्हीं को दिल दे दिया हमने !
Submitted By : शांती स्वरूप मिश्र
न बची जीने की चाहत, तो मौत का सामान ढूंढता है !
क्या हुआ है दिल को, कि कफ़न की दुकान ढूंढता है !
समझाता हूँ बहुत कि जी ले आज के युग में भी थोड़ा,
मगर वो है कि बस, अपने अतीत के निशान ढूंढता है !
मैं अब कहाँ से लाऊं वो निश्छल प्यार वो अटूट रिश्ते ,
बस वो है कि हर सख़्श में, सत्य और ईमान ढूंढता है !
दिखाई पड़ते हैं उसे दुनिया में न जाने कितने हीअपने,
मगर वो तो हर किसी में, अपने लिए सम्मान ढूंढता है !
मूर्ख है “मिश्र” न समझा आज के रिश्तों की हक़ीक़त,
अब रिश्तों से मुक्ति पाने को, आदमी इल्ज़ाम ढूंढता है !
Submitted By : शांती स्वरूप मिश्र