Sard Mausam Ka Maza Kitna Alag Sa Hai
Sard mausam ka maza kitna alag sa hai,
Tanha raat mein intazaar kitna alag sa hain,
Dhund bani naqab, aur chupa lia sitaron ko,
Unki tanhaai ka ab ehsas kitna alag sa hai
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Sard mausam ka maza kitna alag sa hai,
Tanha raat mein intazaar kitna alag sa hain,
Dhund bani naqab, aur chupa lia sitaron ko,
Unki tanhaai ka ab ehsas kitna alag sa hai
धूप भी खुल के कुछ नहीं कहती
रात ढलती नहीं, थम जाती है
सर्द मौसम की एक दिक्कत है
याद तक जम के बैठ जाती है
मेरी ज़िन्दगी में, तेरी याद भी उसी तरह है,
जैसे सर्दी की चाय में, अदरक का स्वाद…
काश तुम भी हवा की तरह होती,
रजाई थोड़ी सी खुलती और तुम अंदर आ जाती।
मौसम बहुत सर्द है,
चलो ऐ दोस्तों ….
गलतफहमियों को आग लगाते है….
अच्छा सुनो,
सर्दी तो कम होने का नाम ही नही ले रही बिल्कुल तुम्हारी बेरुखी की तरह..
सर्द रातों की तन्हाई में दिल अपना कुछ यूँ बहलातें हैं…
कुछ उनका लिखा दोहरातें हैं कुछ अपना लिखा मिटाते हैं…
ऐ सर्दी इतना न इतरा
अगर हिम्मत है तो जून में आ।।
वक़्त सर्द है थोड़ा
बाहों का सहारा ले ले ज़रा
तुझे लग न जाये ठण्ड
मेरी यादों को ओढ़ ले ज़रा
ना जाने किस रैन बसेरे की तलाश है… इस चाँद को…!
रात भर बिना कम्बल ,भटकता रहता है इन सर्द रातों में…..!!