Hindi Anmol Vachan – Suraj Dhala To Kad Se Unche
सूरज ढला तो कद से ऊँचे हो गए साये
कभी इन्ही परछाईयो को पैरों से रौंदते हम गए.
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सूरज ढला तो कद से ऊँचे हो गए साये
कभी इन्ही परछाईयो को पैरों से रौंदते हम गए.
उधार के उजाले से चमकने वाले चाँद कि आँखों में चुभता हूँ
जुगनू हूँ थोडा लेकिन खुद का उजाला लेके घूमता हूँ
तुम शराफ़त को बाज़ार में क्यूँ ले आए हो
दोस्त
ये सिक्का तो बरसों से नहीं चलता!!
एक छुपी हुई पहचान रखता हूँ,
बाहर शांत हूँ, अंदर तूफान रखता हूँ,
रख के तराजू में अपने दोस्त की खुशियाँ,
दूसरे पलड़े में मैं अपनी जान रखता हूँ।
भले जुबान अलग पर जज्बात तो एक है,
उसे खुदा कहूँ या भगवान बात तो एक है.
मैं खुल के हँस रहा हूँ फकीर होते हुए
वो मुस्कुरा भी ना पाया अमीर होते हुए
“उम्र भर चलते रहे मगर कंधो पे आये कब्र तक,
बस कुछ कदम के वास्ते गैरों का अहसान हो गया!!
नये कमरों में ये चीज़ें पुरानी कौन रखता है
परिंदों के लिए शहरों में पानी कौन रखता है
बन्दगी से भी अच्छा एक काम कर लीया,
माँ के चश्मे को रुमाल से साफ कर लिया
मुहब्बत आजमानी है, तो बस इतना ही काफी है,
जरा सा रूठ कर देखो, मनाने कोन आता है