उनके सारे ग़मों को, दिल में सजा लिया हमने !
अपने मोम से दिल को, पत्थर बना लिया हमने !
खुशियों की आहट को जब जब भी सुना दूर से,
दिल पर उदासिओं का, पहरा लगा दिया हमने !
रौशनी की कमीं न हो महसूस उनको कभी भी,
ज़रुरत पड़ी तो अपना ही, दिल जल दिया हमने !
अफ़सोस कि हमें तज़ुर्बा न था ज़िन्दगी जीने का,
बस औरों की आग मे, खुद को जला दिया हमने !
ये कैसा अजीब सा नसीब पाया है हमने भी यारो,
जो खंज़र लिए बैठे हैं, उन्हीं को दिल दे दिया हमने !
Submitted By : शांती स्वरूप मिश्र