नाराज़गी समझते हैं न नाखु़शी हमारी
यही है मुद्दत से परेशानी हमारी
हुक्मरानों से मिन्नत हमारे खूं में नहीं
ख़ुद्दारी आदत है ख़ानदानी हमारी
नाराज़गी समझते हैं न नाखु़शी हमारी
यही है मुद्दत से परेशानी हमारी
हुक्मरानों से मिन्नत हमारे खूं में नहीं
ख़ुद्दारी आदत है ख़ानदानी हमारी
मन्नत और मिन्नत में बटीं ज़िन्दगी मेरी,
ख़ुदा से तुझे और तुझसे वफा मांगते हैं।
कहानी नहीं एक हकीक़त है तु,
हर एक लफ्ज़ की ज़ीनत है तु।
दुआ में पढ़ु और हवा को लिखुं,
मेरी जुस्तजू, मेरी मिन्नत है तु।
मिन्नत किसी रोज मौत, दस्तक दे मेरे दरवाजे पे…….!!
अरसा हुआ दर्द के सिवा, किसी और मिले हुए………!!
कुछ न बन पडा तो खुद डूबो देंगे सफ़िना…
साह़िल की क़सम मिन्नत-ए-तूफां न करेंगे…
वहशत में भी मिन्नत-कश-ए-सहरा नहीं होते,
कुछ लोग बिखरकर भी तमाशा नहीं होते
लब बंद हैं साक़ी मिरी आँखों को पिला दे
वो जाम जो मिन्नत-कश-ए-सह्बा नहीं होता॥
चलो उसका नही तो खुदा का एहसान लेते हैं…
वो मिन्नत से ना माना तो मन्नत से मांग लेते हैं..
फिर जी में ये है कि दर पे किसी के पड़े रहें,
सर ज़ेर-बार-ए-मिन्नत-ए-दरबाँ किए हुए..!
आँख उठा कर जो रवादार न था देखने का
वही दिल करता है अब मिन्नत ओ ज़ारी उस की