एक क़तरा आंसूं भी, उनसे बहाया न गया !
किसी खौफ से, अपना मुंह उठाया न गया !
मेरी मौत पर भी वो हौसला न जुटा पाये,
शायद दाग़ ए रंजिश, अभी हटाया न गया !
दामन में समेंटे हैं मेरे हज़ार गीत लेकिन,
मेरा कोई तराना, उनसे गुन गुनाया न गया !
किसको क़ातिल कहूँ क्या बताऊँ छोडो भी,
मगर गैरों से तो खंज़र, कभी उठाया न गया !
यकीं था मुझे अपने दिले नादाँ के वहम पर,
मगर हक़ीक़त से परदा, कभी हटाया न गया !
Submitted By : शांती स्वरूप मिश्र