सितारों से उलझता जा रहा हूँ
शबे-फ़ुर्कत बहुत घबरा रहा हूँ
यकीं ये है हक़ीकत खुल रही है
गुमां ये है कि धोखे खा रहा हूँ
सितारों से उलझता जा रहा हूँ
शबे-फ़ुर्कत बहुत घबरा रहा हूँ
यकीं ये है हक़ीकत खुल रही है
गुमां ये है कि धोखे खा रहा हूँ
बहुत याद आते हो सनम !!!!!
कोई तदबीर निकालो मिलने की
या हमें मौत दे दो ना हम रहेंगे ना ये फ़ुर्कत का ग़म
निकल जाए यूँही फ़ुर्कत में दम क्या
न होगा आप का मुझ पर करम क्या
ज़ुबाँ तो खोल नज़र तो मिला जवाब तो दे
ख़ुद को देख सकूँ आइने में फिर वो रुआब तो दे
बहुत जिए फ़ुर्कत के आलम में
अब शब-ए-वस्ल का मेहताब तो दे
नक्श फितरत ने जो उभारे हैं,
कुछ किनारे हैं कुछ इशारे हैं,
हमसे पूछो बहार-ए-जलवा-ए-दोस्त,
हमने फ़ुर्कत के दिन गुजारे हैं
सितारों से उलझता जा रहा हूँ
शबे-फ़ुर्कत बहुत घबरा रहा हूँ
यकीं ये है हक़ीकत खुल रही है
गुमां ये है कि धोखे खा रहा हूँ
शब-ए-फ़ुर्कत का जागा हूँ फ़रिश्तों अब तो सोने दो
कभी फ़ुर्सत में कर लेना हिसाब आहिस्ता-आहिस्ता
फ़ुर्कत के लम्हों मे चांदनी रात नही अच्छी लगती
जो तू नही है पास, तो बरसात नही अच्छी लगती…
अगर तू इत्तेफ़ाक़न मिल भी जाए
तेरी फ़ुर्कत के सदमें कम न होंगे
और कुछ देर न गुज़रे शब्-ए-फ़ुर्कत से कहो
दिल भी कम दुखता है वो याद भी कम आते हैं